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‘कुछ करिए, असम से रातों-रात बांग्लादेश डिपोर्ट किए जा रहे लोग’, याचिकाकर्ता की अपील पर जज ने कहा- नहीं सुनेंगे याचिका

घुसपैठिया करार देकर लोगों को बांग्लादेश डिपोर्ट करने की असम सरकार की नीति के खिलाफ दाखिल याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट जाएं. एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में व्यक्तिगत पीड़ा रखी और कहा कि शायद बिना उचित प्रक्रिया के अचानक उसकी मां को बांग्लादेश भेज दिया गया है. उसे पता नहीं है कि मां कहां है. कोर्ट ने इस याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई की बात कही.

30 मई को मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और जस्टिस ए एस चंदुरकर की बेंच के सामने यूनुस अली नाम के शख्स ने याचिका दाखिल कर कहा था कि उसकी मां को असम पुलिस ने अवैध रूप से हिरासत में रखा है. यूनुस अली के वकील शोएब आलम की दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 2 जून की तारीख दी थी. यूनुस अली ने अपनी मां मोनोवारा की जल्द रिहाई के लिए अनुरोध किया था.

 

याचिकाकर्ता का आरोप है कि 24 मई को उनकी मां को बयान दर्ज करने के बहाने धुबरी पुलिस थाने बुलाया गया और फिर हिरासत में ले लिया. इस दौरान एडवोकेट शोएब आलम ने आपत्ति जताते हुए इस पर भी चिंता जताई कि राज्य में लोगों को हिरासत में लिया जाता है और रातों-रात बांग्लादेश निर्वासित कर दिया जाता है, जबकि उनके कानूनी मामले लंबित हैं.

वकील ने कोर्ट को बताया कि यूनुस अली की मां की ओर से 2017 में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी, जिस पर नोटिस जारी किए गए, लेकिन फिर भी लोगों को निर्वासित किया जा रहा है जबकि इस अदालत में सुनवाई अभी भी जारी है.

उन्होंने कहा कि ऐसे कई वीडियो प्रसारित हो रहे हैं, जिनमें दिखाया गया है कि लोगों को रातों-रात पकड़कर सीमा पार भेज दिया गया. मोनोवारा 12 दिसंबर, 2019 से उस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जमानत पर थीं, जिसमें असम के विदेशी हिरासत शिविरों में तीन साल से अधिक समय बिताने वाले बंदियों को सशर्त रिहाई की अनुमति दी गई थी.

याचिकाकर्ता का कहना है कि जब उसने अगले दिन पुलिस थाने में जाकर अधिकारियों को बताया कि उनका मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तो उन्हें उनकी मां से मिलने नहीं दिया गया और उनकी रिहाई से भी इनकार कर दिया गया. याचिका में गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है, जिसने मोनोवारा को विदेशी घोषित करने वाले विदेशी न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखा था.

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